सफलता के साथ चरित्र निर्माण
When Wealth
is lost nothing is lost,
When Health
is lost something is lost,
When Character is lost everything is lost.
चरित्र मनुष्य के मन और
हृदय पर पड़ने वाले कर्म-अभ्यास और विचार के संस्कारों पर आधारित है। यदि जीवन में
शुभ कर्मों का बोलबाला रहता है, तो चरित्र पवित्र और
पवित्र हो जाता है। लेकिन अशुभ संस्कार प्रबल होने पर चरित्र अशुद्ध और अशुद्ध हो
जाता है।
जिससे इंसानों में बुराई करने की प्रवृत्ति पैदा होती है। कुसांग मनुष्य की बुराई करने की प्रवृत्ति को गुलाम बनाता है। जब व्यक्ति में सत्संग के माध्यम से अच्छे कर्म करने की आदत विकसित हो जाती है। अच्छी सोच, अच्छे कर्म करना, अच्छे कर्म करना और अच्छे कर्म करना अच्छी सोच अच्छे कर्मों का जन्म है।
शुभ संस्कारों से
मजबूत हुआ मन किसी भी तरह की बुराई करने की इच्छा को रोकता है।
"मन को सत्य से परिपूर्ण रखना ही असत्य को दूर रखने का उपाय है।"
---स्वेट मार्डेन
"जीवन मृत्यु से
अधिक सुंदर है। मृत्यु सत्य से अधिक उचित है।"
------ खलील जिब्रान
ऐसे छोटे-छोटे कामों से ही किसी महान व्यक्ति के वास्तविक चरित्र की जानकारी मिल सकेगी।
महान संयोग छोटे से छोटे
व्यक्ति को भी किसी प्रकार की महानता प्राप्त कर लेते हैं लेकिन वास्तव में महान
व्यक्ति वही होता है जो हर कार्य करते हुए चरित्र में समान रूप से महान रहता है।
उत्साह और संयम चरित्र के
दो फेफड़े हैं। अच्छी सोच अच्छी सोच और अच्छे व्यवहार का मूल है। इससे चरित्र का
निर्माण होता है और व्यक्ति असत्य, अधर्म और व्यसन से दूर
रहकर चरित्रवान बनता है।
"जीवन काल बहुत
छोटा है। मृत्यु अवश्यंभावी है, इसलिए व्यक्ति
को जीवन में एक आदर्श स्थापित करना चाहिए और उसके लिए जीना या मरना चाहिए।"
---स्वामी विवेकानंद
अतः यदि जीवन में अच्छे
संस्कार और शुद्ध चरित्र हों तो मनुष्य मूल्यवान और पवित्र बनता है। इसलिए सफलता
के साथ चरित्र निर्माण भी जरूरी है।
स्वर्ण सूत्र :-
1. शिष्टाचार
2. शुद्ध चरित्र
3. स्वस्थ बॉडी
4. मजबूत मनोबल
इस प्रकार स्वस्थ और सुखी
जीवन के मूल्यों को समझने के लिए सफलता के साथ चरित्र निर्माण भी आवश्यक है। तभी
आप सुखी जीवन का आनंद महसूस कर पाएंगे।
---- डॉ मधुकर बोखानी, नडियाद.
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